Puneet Verma Poetry

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Category Archives: Greentech Poems

पोल्लुशन की दौड़ में हमने , नंबर एक जो पाया है

धुंए का ये बादल देखो, हमने आज बनाया है
अर्जित नहीं किया है उतना, जितना आज गवाया है
शहर की अपने हुई तररक्की, दुनिया रह गई हक्की बक्की
पोल्लुशन की दौड़ में हमने , नंबर एक जो पाया है

इतना क्यों मजबूर हुए हम, पैदल चलना भूल गए
दो पैसे की अक्ल ना पाई, काहे हम सब स्कूल गए
अपनी अपनी कार घुसाकर, ट्रैफिक जैम लगाया है
पोल्लुशन की दौड़ में हमने , नंबर एक जो पाया है

काहे तू बस अपनी सोचे, अपनों की भी सोच ले
साँसे तेरी बंद हो रही, ऑक्सीजन का डोस ले
शहर को अपने नरक बनाया, क्या तूने आज कमाया है
पोल्लुशन की दौड़ में हमने , नंबर एक जो पाया है

गुस्सा अपना ख़तम करो अब, कार चलाना आज छोड़ दो
मेट्रो से भई ट्रेवल कर लो, खाली कर दो आज रोड को
भुगत रहे फल हरपल हमसब, कूड़ा जो फैलाया है
पोल्लुशन की दौड़ में हमने , नंबर एक जो पाया है

अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

खुदा की मोह्हबत में , मदहोश कायनात सारी है
जब तक वो साथ है, जशने-जिंदगी जारी है
जीवन की जेल में, वर्ना हम जीते कैसे
दर्द ये जीवन का, वर्ना हम पीते कैसे
अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

कहता है अपना ये मन, फिर आपको बुलाऊँ मैं
टकराऊं मेह के प्यालों को, शराब को ड्ढलाऊँ मैं
बंदिश मुघसे जीवन की, क्यों सहन नहीं होती है अब
सोने की ये झूठी लंका, क्यों दहन नहीं होती है अब
नाटक इस जीवन का, देखो अब तक जारी है
अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

करता हूँ सलाम सबको, तो फिर मैँ अब चलता हूँ
डूबते हुए सूरज के साथ, तो फिर मैँ अब ढलता हूँ
हाज़िर कर दूँ खुद को अब, खुदा के दरबार में
खुशियां आएं जीवन में, और इस संसार में
वर्मा के इन् होठों पर , देखो कविता जारी है
अपनी तो खत्म हो गयी, अब आपकी बारी है

अब से मैं उड़ूंगा, और ये हवा भी मेरा साथ देगी

अनुशासन के मार्ग पर, अब से मैं चलूँगा
दीपक के घी जैसा, अब से मैं ढलूँगा
चमकूँगा सीप की तरह, सूरज की रौशनी भी हाथ देगी
अब से मैं उड़ूंगा, और ये हवा भी मेरा साथ देगी

मोर पंख जैसा रंगीन, मन अपना हो जाएगा
वृक्षों के जैसा ग्रीन, तन अपना हो जाएगा
तारों की चाॅदर अब से , मुघको ये रात देगी
अब से मैं उड़ूंगा, और ये हवा भी मेरा साथ देगी

– पुनीत वर्मा की कलम से, मिशन ग्रीन दिल्ली ब्लॉग

जिंदगी की सड़क पर, हम कहाँ आ गए

जिंदगी की सड़क पर, हम कहाँ आ गए
छोड़ के उस वक़्त को, जो बड़ा मासूम था
बरखा में भीगे पत्तों सा, वृक्षों में जो गुम था
उस रस्ते से निकलकर, हम कहाँ आ गए
जिंदगी की सड़क पर, हम कहाँ आ गए

ऐ वक़्त ऐ रहनुमा, करता हूँ मैं इल्तज़ा
चिंतामई  इस युग से अब, वापस मुझको लेकर जा
लड़खड़ाते इन क़दमों से, हम कहाँ आ गए
जिंदगी की सड़क पर, हम कहाँ आ गए

क्यों बिछड़ कर चले गए, सर्जक जो हमारे थे
दिल के नजदीक थे, और बहुत प्यारे थे
लगता नहीं अब कोई अपना, हम जहां आ गए
उस रस्ते से निकलकर, हम कहाँ आ गए

नष्ट हो जाएगी इक दिन जो, मैं वो कठपुतली हूँ

कर्म जिसका मनोरंजन है, जीवन का दुखभंजन है
समाज को संतुलित कर रही, डोर वो पतली हूँ
खोई है जो फूलों में, सावन के झूलों में
नष्ट हो जाएगी इक दिन जो, मैं वो कठपुतली हूँ

त्याग दी जाती है, कठपुतली जब काम ना आए
कर्म को जो भूल गयी, स्मरण उसका नाम ना आए,
कठपुतली जिससे नाच रही है, मैं वो बिजली हूँ
नष्ट हो जाएगी इक दिन जो, मैं वो कठपुतली हूँ

कठपुतली से मोहित होना, मूर्खता की निशानी है
खो गयी इच्छाओं में, बेकार वो जवानी है
जल  तक जो सीमित रहती , मैं वो मछली हूँ
नष्ट हो जाएगी इक दिन जो, मैं वो कठपुतली हूँ

ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

शंका की अब सुई टूटी, खत्म हमारा वहम हो गया
जबसे उनकी पीड़ा देखि, खत्म हमारा अहम हो गया
उनको अपने गले लगाकर, सपना ये साकार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

शिवाजी का काम बिगाड़ा, हाथ मिलाकर औरंगजेब ने
भोंसले ने हार ना मानी, हाथ उठाया फुल वेग से
गोबिंद सिंह जी अमर हुए, वज़ीर खान पर वार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

आज अचानक सपना देखा, दुश्मन को भी अपना देखा
झट से उनको माफ़ कर दिया, रूप उन्होंने अपना देखा
सागर अपना हृदय बन गया, भावुकता का वार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

शहर को अपने आज बचाएं, मिशन ग्रीन की कविता गाएँ
करुणा रुपी घी से हर पल, ग्रीन टेक की ज्योत जलाएं
भोग सुदामा के हाथों का, जल्दी से स्वीकार हुआ
ग्रीन टेक की कविता गाकर, सुन्दर ये संसार हुआ

बॉस से मुझको आज बचाए, वही बहाना सोच रहा हूँ

मस्त भरे इस मौसम में, जल्दी उठना  क्राइम हो गया
योगा करना भूल गया मैं,ऑफिस का अब टाइम हो गया
ट्राफिक के इस दल दल में, बालों को मैं नोच रहा हूँ
बॉस से मुझको आज बचाए, वही बहाना सोच रहा हूँ

चाहे ऑफिस जल्दी जाऊं, चाहे जाऊं मैं देर से
शार्ट रुट से दौड़ लगाऊँ, पहुंचु फिर भी मैं देर से
भाग रहा हूँ ऑफिस जैसे, मिल्खा सिंग का कोच रहा हूँ
ट्राफिक के इस दल दल में, बालों को मैं नोच रहा हूँ
बॉस से मुझको आज बचाए, वही बहाना सोच रहा हूँ

सोते सोते बिस्तर में, मॉर्निंग वाक का प्लान बनाया
रीट्वीट कराकर लोगों को, ग्रीन ब्लॉग का फैन बनाया
अपने को में बॉस मानकर, दुनिआ को मैं कोस रहा हूँ
ट्राफिक के इस दल दल में, बालों को मैं नोच रहा हूँ
बॉस से मुझको आज बचाए, वही बहाना सोच रहा हूँ

पानी गिर गया मुख पर मेरे, पानी फिर गया ग्रीन ड्रीम पर
सोने में फिर लेट हो गया, कविता लिखकर मिशन ग्रीन पर
ग्रीन टेक के प्याले में, देखो पी मैं स्कॉच रहा हूँ
ट्राफिक के इस दल दल में, बालों को मैं नोच रहा हूँ
बॉस से मुझको आज बचाए, वही बहाना सोच रहा हूँ

Muster your courage on, mission green delhi

With this poem, i am swinging into action
Idea that crossed, my mind in a fraction

Never let bullets, bite you lady
bite the bullets, always be ready
speak up your heart, dont be a silly
muster your courage on, mission green delhi

never keep quite, while black sheeps gaze
scream like a radio, break up the maze
demolish those teasers, whose intents are hilly
muster your courage on, mission green delhi

tinkle your friends, try to scram
smirks at trapped, slap those lambs
blow them out, spray something smelly
muster your courage on, mission green delhi

Dogs not restricted, will bite your friends
Silence once battled, fights and bends
share your voice on, greentechdelhi
muster your courage on, mission green delhi

Be a green human, be a glazy fire

hink of krishna, enjoy this verse
nothing destroys, in this universe
rules of nature, we shall abide
give up the path where, illusions reside
neither are we creator, nor we are destroyer
be a green human, be a glazy fire

everything changes, form to form
human to soil, soil to worm
changes this day, changes this night
changes this black, changes this white
avoid the blabbing, never be a liar
be a green human, be a glazy fire

to each and every action, there is a reaction
echo comes back, just in a fraction
comes back the pain, comes back desire
comes back the cause, comes back satire
be a green human, be a glazy fire

Make vision a reality, step up with green

Do campaign for environment, enable city to glitter
Without any fear, stop people who litter
Report criminals on facebook, who pee on road
Use public toilets, for sake of god
Be a green leader, accomplish the dream
Make vision a reality, step up with green

Reduce vehicles on road, to save steeping city
Control anger of yours, to be somewhat witty
Be helpful on roads, hear needy’s scream
Make vision a reality, step up with green

Improve your service, improve your skills
Be a green human, reduce your bills
Control your cholestrol, avoid eating cream
Make vision a reality, step up with green

Be health concious, change your diet today
Tempty which fried food has, avoid that bite today
Avoid using earphones outside, avoid using laptop screen
Make vision a reality, step up with green

Puneet request you to, follow his green blog
Be a quick change leader, never stopping ideas slog
Live a healthy lifestyle, start sharing greentech’s beam
Make vision a reality, step up with green